भारत में ब्रिटिश राज के अवशेषों के रूप में छोड़ी गई कई सामाजिक त्रासदियों में से एक है, मध्य प्रदेश के बंछड़ा जनजाति में प्रचलित वेश्यावृत्ति की परंपरा। "हाईवे नाइट्स" परेशान करने वाली इसी सच्चाई पर एक आशाजनक हस्तक्षेप है, जो शायद ही कभी ज्वलंत मुद्दों के बीच अपनी जगह बना पाता है। इस प्रेस विज्ञप्ति में मल्टीमीडिया शामिल है। पूरी विज्ञप्ति यहां देखें: https://www.businesswire.com/news/home/20221208006016/en/ निर्देशक शुभम सिंह बताते हैं, "ढाबे (राजमार्ग के किनारे खाने की झोंपड़ी) पर घटी एक वास्तविक जीवन की घटना ने मुझे इस मुद्दे पर फिल्म बनाने के लिए प्रेरित किया।" राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म निर्माता-अभिनेता प्रकाश झा ने आईएएनएस लाइफ के साथ अपने साक्षात्कार में कहा, "हाईवे नाइट्स एक महत्वपूर्ण संदेश वाली फिल्म है और मुझे उम्मीद है कि यह दुनिया भर में नाटकीय, डिजिटल और टेलीविजन प्रसारण के साथ व्यापक दर्शकों तक पहुंचेगी।" फिल्म में प्रकाश झा बहुत ज्यादा काम करने वाले और कम वेतन वाले ट्रक चालक की भूमिका निभा रहे हैं, जो अपनी यात्रा के दौरान माजेल व्यास द्वारा निभाए गए किरदार वाली युवा लड़की से टकराते हैं। उनके पिता समान आचरण पर वह लड़की सहज विश्वास कर लेती है। और इस तरह एक प्रतिकूल वातावरण में दयालुता, मानवता और सहानुभूति की एक हृदयस्पर्शी कहानी बनती है, जहां सेक्स वर्कर्स को आमतौर पर इंसानों के रूप में नहीं देखा जाता है। वास्तव में इन सबकी शुरुआत वहां से होती है, जब इस जनजाति के एक व्यक्ति द्वारा ब्रिटिश राज के अधिकारी की हत्या के दंड में पूरी जनजाति को दंडित किया जाता है और फिर बंछड़ा जनजाति की तरफ से बड़े पैमाने पर बेरोजगारी का मुकाबला करने के लिए एक हताश उपाय के रूप में इसकी शुरुआत होती है। यह बताता है कि कैसे अपनी जड़ जमा चुका देह व्यापार अब परंपरा का रूप ले चुका है। इस जनजाति के पुरुष परंपरा के वेश में इस कुप्रथा को आगे बढ़ा रहे हैं। बंछड़ा वास्तव में एकमात्र जनजाति नहीं है जिसने वेश्यावृति को एक स्वीकृत व्यवसाय के रूप में अपनाया है। यूपी में नट समुदाय को अंग्रेजों द्वारा 1871 के आपराधिक जनजाति अधिनियम के तहत सूचीबद्ध किया गया था, और फिर मजबूरी में उन्हें अपनी महिलाओं से वेश्यावृति करानी पड़ी क्योंकि उनके पास आजीविका का एक मात्र स्रोत यही था। नट पुरवा को लंबे समय से वहां के लोगों द्वारा "विलेज ऑफ बास्टर्ड" के रूप में जाना जाता है। भारत के दक्षिणी राज्यों में "देवदासियों" ने भी समान परंपरा को स्वीकार किया और स्थानीय देवता से उनकी “शादी" कर दी जाती थी और फिर मंदिर के पुजारी उन्हें “भगवान की महिला दासी" मानकर उनका शोषण किया करते थे। फिल्म से पहले अपने शोध में, सिंह ने यह भी उल्लेख किया है कि इनमें से कुछ आदिवासी लड़कियों को उनके परिवार के सदस्यों जैसे पिता, चाचा और भाइयों द्वारा वेश्यालय में बेचने से पहले बलात्कार किया जाता है। सिंह ने कहा, “लोग वेश्यावृत्ति या इस धंधे में लगे लोगों को इंसान नहीं मानते हैं। यह कठोर वास्तविकता थी जिसने मुझे इस मुद्दे पर बात करने के लिए प्रेरित किया। यौनकर्मी या सेक्सवर्कर मेरे और आपकी ही तरह इंसान हैं। उनका जीवन और सपने उतने ही महत्वपूर्ण हैं।” वह अपनी पूरी टीम और एसोसिएट प्रोड्यूसर एलीशा कृस और प्रोड्यूसर अखिलेश चौधरी को इस प्रोजेक्ट में कड़ी मेहनत और विश्वास के लिए श्रेय देते हैं, जिसकी वजह से एक बेहतर सिनेमा मनोरंजन और विजुअल के माध्यम से जागरूकता फैलाने जैसा अच्छा काम कर पाता है। एसोसिएट प्रोड्यूसर क्रिस ने कहा, “भारत में जन्मी और पली-बढ़ी होने के कारण मुझे हमेशा भारत में महिलाओं से जुड़े मुद्दों को संबोधित करने की आवश्यकता महसूस हुई। यह फिल्म इस बात पर प्रकाश डालती है कि भेदभाव देश की महिलाओं की शिक्षा और उनके अधिकारों के मामले में उन्हें कैसे बेरोजगारी और असमानता की ओर ले जाता है।” फिल्म को आलोचनात्मक प्रशंसा मिली है और इसे बेस्ट ऑफ इंडिया शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल 2021 में ग्रैंड जूरी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। जल्द ही लॉस एंजिल्स, यूएसए में फिल्म के लिए हॉलीवुड रिलीज की उम्मीद है। ![]() businesswire.com पर स्रोत विवरण देखें: https://www.businesswire.com/news/home/20221208006016/en/ |
संपर्क: मेगा वर्ल्ड मीडिया राधिका पटेल, [email protected] घोषणा (अस्वीकरण): इस घोषणा की मूलस्रोत भाषा का यह आधिकारिक, अधिकृत रूपांतर है। अनुवाद सिर्फ सुविधा के लिए मुहैया कराए जाते हैं और उनका स्रोत भाषा के आलेख से संदर्भ लिया जा सकता है और यह आलेख का एकमात्र रूप है जिसका कानूनी प्रभाव हो सकता है। |
