शारीरिक जांच के लिए अल्ट्रासाउंड का का उपयोग खूब किया जाता है। योजना है कि इसका इस्तेमाल पार्किन्संस डिजीज, डिमेंशिया और डायबिटीज के उपचार के लिए बढ़ाया जाए। नेशनल त्सिंग हुआ यूनिवर्सिटी की एक अनुसंधान टीम इंस्टीट्यूट ऑफ मोलिकुलर मेडिसिन के एसोसिएट प्रोफेसर यु-चुन लिन और बायोमेडिकल इंजीनियरिंग तथा एनवायरमेंटल साइंसेज विभाग के छिह-कुआंग येह के नेतृत्व में चूहों में पार्किन्संस डिजीज के मोटर सिमटम्स को सफलतापूर्वकबेहतर किया है। इसके लिए सेल्यूलर प्रोटीन इंजेक्ट किए गए हैं जो डीप ब्रेन रीजन (गहन मस्तिष्क क्षेत्र) में अल्ट्रासाउंड के तरंगों के लिए बेहद संवेदनशील हैं। इसके बाद अल्ट्रासाउंड का उपयोग न्यूरॉन सेल को सक्रिय करने के लिए किया जाता है। इस प्रेस विज्ञप्ति में मल्टी मीडिया है। पूरी विज्ञप्ति यहां देखें : https://www.businesswire.com/news/home/20200311005032/en/ एनटीएचयू के यु-चुन लिन (बाएं) और छिह-कुआंग येह के नेतृत्व में एक अनुसंधान टीम ने अल्ट्राउंड के इस्तेमाल का विस्तार पार्किन्संस डिजीज के विस्तार के लिए किया है। (फोटो : नेशनल त्सिंग हुआ यूनिवर्सिटी) उनका अभिनव अनुसंधान नैनो लेटर्स (Nano Letters) के जनवरी अंक में प्रकाशित हुआ है और उनके नॉन इनवेसिव उपचार को पहले ही ताईवान और अमेरिका में पेटेंट करा लिया गया है। लिन ने सेल गतिविधि को नियंत्रित करने के लिए लंबे समय तक एक सुरक्षित, नॉन इनवेसिव तरीका तलाशने की कोशिश की है। वैसे तो प्रकाश तरंग सुरक्षित हैं और करीब 0.2 सेंमी की गहराई तक ही पहुंच सकते हैं जबकि चुम्बकीय तरंग ज्यादा गहराई तक जा सकते हैं पर इनमें सूक्ष्मता नहीं होती है। इसके उलट अल्ट्रासोनिक तरंग 15 सेंमी की गहराई तक जा सकते हैं और प्रभावित हिस्से पर केंद्रित किए जा सकत हैं। इस तरह, चुनौती यह थी कि सेल्स को कैसे अल्ट्रासाउंड की प्रतिक्रिया करने योग्य बनाया जाए। लिन ने कहा कि तकरीबन सभी स्तनपायी जीवों में एक तरह की उच्च आवर्तता वाला सुनने का प्रेशर प्रोटीन होता है जिसे प्रेसटिन के नाम से जाना जाता है। हालांकि मानव शरीर में प्रेसटिन को अल्ट्रासाउंड के प्रति मामूली संवेदनशीलता है। इसके उलट, डॉल्फिन, व्हेल और सोनार चमगादड़ अति उच्च आवर्तता वाले ध्वनि तरंगों के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं। उनकी प्रेसटिन प्रोटीन आवर्तता की तुलना करके लिन ने पाया कि उन सब में एक विशेष एमिनो एसिड होता है जिसे उन्होंने चूहों के सेल के रूप में कोलोनाइज किया ताकि उनके प्रेसटिन प्रोटीन को संशोधित किया जा सके। इसका नतीजा यह हुआ कि अल्ट्रासाउंड को समझने की सेल्स की योग्यता में तुरंत दस गुना वृद्धि हुई। लिन का अगला कार्य अल्ट्रासाउंड का उपयोग बीमारियों के उपचार के लिए करने का तरीका तलाशना था। इसके लिए उन्होंने अल्ट्रासाउंड एक्सपर्ट येह की सलाह ली। उन्होंने छोटे बुलबुलों में प्रेसटिन जीन फ्रैगमेंट्स को शामिल करने का तरीका तलाशा। इसे इंट्रावेनस इंजेक्शन से लक्ष्य क्षेत्र में आकर्षित भी किया जा सकता है। जैसे ही अल्ट्रासाउंड लागू किया जाता है बुलबुले टूट जाते हैं और जीन फ्रैगमेंट लक्ष्य सेल में प्रवेश कर जाते हैं। इस तरह, अल्ट्रासाउंड का पता लगाने और उसपर प्रतिक्रिया करने की उसकी योग्यता सक्रिय होती है। येह ने कहा, “पार्किन्संस डिजीज और अलजीमर डिजीज मस्तिष्क में सेल्स के क्षरण और उनके खत्म हो जाने के कारण होते हैं। पर एक बार अगर प्रेसटिन जीन फ्रैगमेंट्स का लक्ष्य क्षेत्र में प्रत्यारोपण कर दिया जाए तो एट्रोफायड सेल्स को जगाने के लिए अल्ट्रासाउंड का इस्तेमाल किया जा सकता है ताकि वे नए न्यूरल कनेक्शन बनाना शुरू कर सकें।” टीम ने एक वीडियो बनाया है जिसमें दिखाया गया है कि कैसे पार्किन्संस डिजीज वाला एक चूहा लकड़ी का पुल पार करने से पहले रुक जाता है और यही चूहा सेल ट्रांसप्लांटेशन और अल्ट्रासाउंड उपचार के बाद पुल को आसानी से पार कर जाता है। यह भी पाया गया है कि उपचार के परिणामस्वरूप मस्तिष्क में डोपामाइन का स्तर काफी बढ़ जाता है और इससे पार्किन्संस डिजीज के उपचार में इसके प्रभाव का पता चलता है। लिन ने कहा कि इंसुलिन बनाने वाले सेल को प्रेरित करने की इसी प्रक्रिया का उपयोग डायबिटीज के उपचार के लिए किया जा सकता है। स्रोत रूपांतर बिजनेसवायर डॉट कॉम (businesswire.com) पर देखें : https://www.businesswire.com/news/home/20200311005032/en/ |
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