ग्लोबल कोलिशन अगेंस्ट टी.बी. सांसदों, नीतिनिर्माताओं और सिविल सोसाइटी को एकजुट करने के लिए काम करती है ताकी भारत में टी.बी. रोकथाम व नियंत्रण की चुनौतियों पर चर्चा हो जिससे बेहतर टी.बी. नियंत्रण की जरूरत पर जागरुकता बढ़ाई जा सके एवं आवश्यक सिफारिशें तैयार की जा सकें। कर्नाटक हैल्थ प्रोमोशन ट्रस्ट एक निर्लाभकारी धर्मार्थ संस्था है जो भारत के समुदायों के स्वास्थ्य व आरोग्य की बेहतरी के लिए साक्ष्य आधारित कार्यक्रम संचालित करता है।
इस सत्र के सह-अध्यक्ष थेः डॉ दलबीर सिंह, प्रेसिडेंट, ग्लोबल कोलिशन अगेंस्ट टी.बी. तथा डॉ सुदर्शन मंडल, उपमहानिदेशक, सेंट्रल टी.बी. डिविज़न, भारत। वक्ताओं में शामिल थेः श्री एच एल मोहन, सीईओ, कर्नाटक हैल्थ प्रोमोशन ट्रस्ट; सुश्री संगीता पटेल, डायरेक्टर-हैल्थ ऑफिस, USAID, भारत; प्रोफेसर राजीव गौड़ा, पूर्व-सांसद और पूर्व-अध्यक्ष, सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी, भारतीय प्रबंधन संस्थान, बैंगलोर; डॉ. किरीट प्रेमजीभाई सोलंकी, लोकसभा सांसद तथा श्री भुवनेश्वर कलीता; राज्यसभा सांसद।
दुनिया में टी.बी. का बोझ भारत पर सबसे अधिक है, यहां इंसिडेंस रेट (घटना की दर) 27 प्रतिशत है और टी.बी. से मरने वालों का आंकड़ा भी सबसे ज्यादा यहीं है। हालांकी यह बीमारी रोकथाम योग्य है और इसे पूरी तरह ठीक किया जा सकता है लेकिन इससे जुड़े बदनामी के डर के चलते इसकी अनदेखी होती है, डायग्नोसिस में देरी होती है और उपचार में बाधा आती है। यह बात महिलाओं के मामले में खास तौर पर सच है क्योंकि अगर टी.बी. होने की बात सामने आ गई तो उन्हें शादी, शिक्षा, रोजगार, पारिवारिक जीवन में मुश्किलें आएंगी; पोषण व स्वास्थ्य सेवाओं तक औरतों की पहुंच सीमित होती है और साथ ही इस रोग के जैविक असर भी होते हैं। ग्रामीण व शहरी भारत में 15 प्रतिशत से अधिक महिलाओं के परिवारों में टी.बी. की बात को नकार दिया जाता है और उनसे अपेक्षा की जाती है की वे घर का काम-काज बदस्तूर जारी रखें टी.बी. हाने की बात सामने आने पर औरतों को मित्रों करीबी रिश्तेदारों से भेदभाव सहना पड़ता है, उन्हें जबरन अलग-थलग अकेलेपन में जीना पड़ता है।
इस कार्यक्रम की शुरुआत सत्र-अध्यक्ष डॉ दलबीर सिंह ने की, उन्होंने महिलाओं पर टी.बी. के सामाजिक परिणामों की चर्चा। उन्होंने आशा व्यक्त की कि भारत में टी.बी. के लिए जेंडर-रिस्पाँसिव फ्रेमवर्क जारी होने के साथ महिलाओं के लिए एक-समान और परिवर्तनकारी दृष्टिकोण अपनाया जाएगा। उनके बाद, डॉ सुदर्शन मंडल ने राष्ट्रीय टी.बी. उन्मूलन कार्यक्रम की सफलता पर चर्चा की, जिससे डायग्नोसिस की दर सुधरी है और उपचार अनुपालन को बढ़ावा मिला है। उन्होंने वक्ताओं का स्वागत किया और आशा व्यक्त की कि इस सत्र से टी. बी. मुक्त भारत के लिए महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त होंगी।
तत्पश्चात् सत्र के वक्ताओं ने अपनी बातें रखीं; KHPT के सीईओ श्री एच एल मोहन ने कर्नाटक हैल्थ प्रोमोशन ट्रस्ट के अनुभवों और सीखों की चर्चा की। यह ट्रस्ट हाशिए पर मौजूद तबकों की चुनौतियों पर प्रतिक्रिया देने के लिए सामुदायिक ढांचा और तंत्र बनाने पर ध्यान देता है ताकी मुद्दों के बारे में लोगों को जागरुक किया जाए और उनका भरोसा कायम किया जाए। यह ट्रस्ट USAID और सेंट्रल टी.बी. डिविज़न के साथ मिलकर भी काम करता है ताकी अवरोधों को दूर किया जा सके, लोगों के व्यवहार में बदलाव के लिए निरतंर प्रयास किए जाते हैं जिससे की टी.बी. उन्मूलन की कोशिशों में तेज़ी लाई जा सके। उन्होंने कहा, “यह आवश्यक है की हम समाज के साथ काम करें ताकी सेवाएं पहुंचाने में आ रही कमियों को दूर किया जा सके तथा बड़े पैमाने पर जनता तक पहुंचने के लिए प्रभावशाली एवं पहुंचनीय सम्प्रेषण सामग्री का निर्माण किया जा सके।”
USAID-भारत में डायरेक्टर ऑफ हैल्थ ऑफिस सुश्री संगीता पटेल ने लैंगिक समानता हेतु सहभागिता पर चर्चा करते हुए कहा, “USAID भारत में एक राष्ट्रीय ढांचे के परिचालन हेतु कार्य कर रहा है जो की देश में टी.बी. उपचार के लिए जेंडर-रिस्पाँसिव दृष्टिकोण के साथ काम करेगा। इसके तहत एक ऐसा परिवेश तैयार किया जाएगा जहां लिंग आधारित असमानताओं एवं उनके असर का हिसाब रखा जाएगा ताकी स्वास्थ्य कल्याण के क्षेत्र में काम करते हुए उनका समाधान तय किया जा सके।”
पूर्व-सांसद और भारतीय प्रबंधन संस्थान, बैंगलोर में सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी के पूर्व-अध्यक्ष प्रोफेसर राजीव गौड़ा ने कहा, “टी.बी. नियंत्रण के कार्य में मरीज़ की आवाज़ नदारद है, इसका समाधान करना अत्यंत आवश्यक है। जो लोग टी.बी. से प्रभावित हुए हैं उनकी आवाज़ों को शामिल करके ही हम पूर्वाग्रहों को तोड़ सकते हैं तथा इस रोग से संबंधित गलत जानकारियों व बदनामी से मुकाबला करने के लिए वास्तविक अनुभवों से सीख सकते हैं। टी.बी. रोगियों को बदलाव की आवाज़ बनाकर हमें उन्हें सशक्त करना होगा।”
लोकसभा सांसद डॉ किरीट पी सोलंकी ने टी.बी. के सबसे ज्यादा जोखिम में रहने वालों के लिए सहायता व्यवस्था बनाने की जरूरत और इसमें नीतिनिर्माताओं की भूमिका पर चर्चा की। उन्होंने कहा, “यह आवश्यक है की -राज्य, जिला व ब्लॉक- प्रत्येक स्तर पर राजनीतिक प्रतिबद्धता हो ताकी टी.बी. मुक्त भारत के असरदार अमल को मुमकिन किया जा सके। खास तौर पर यह जरूरी है की हम पंचायती राज संस्थानों के साथ मिलकर काम करते हुए उस आबादी तक पहुंचे जिस पर टी.बी. का सबसे अधिक जोखिम है।”
श्री भुवनेश्वर कलीता ने इस पर बात की कि टी.बी. उपचार के विस्तार में नीति निर्माताओं की क्या भूमिका है और कोई पीछे न रह जाए इसलिए टी.बी. उपचार तक पहुंच बढ़ाना कितना महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा, “समय के साथ समाज में बदलावों के मुताबिक नीतियों में परिवर्तन होना चाहिए। नीति निर्माताओं को लोगों का रवैया बदलने के लिए काम करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना होगा की मानवाधिकारों एवं रोगी-केन्द्रित दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करते हुए टी.बी. उपचार में वृद्धि की जाए।”
इस कॉन्फ्रेंस में टी.बी. मुक्त भारत के साथ परिवर्तनकारी भविष्य के लिए महत्वपूर्ण स्टेकहोल्डरों वाले दृष्टिकोण की जरूरत है जिसमें मरीज़ की आवाज़ को भी जगह मिले और जिसमें सामुदायिक ढांचे भी हों।
